मृत सागर कुण्डल
(DEAD SEA SCROLLS)
सन् 1947 के जनवरी माह में मृतसागर के उत्तर पश्चिम किनारे पर जूमा नामक चरवाहा अपनी बकरियों को चराते हुए ऊँची ढलान पर जा पहुँचा। जहाँ उसने दो गढ्ढे नुमा छिद्र देखे और पाया कि इस तरह के आस-पास हजारों गुफाएँ मौजूद हैं। उसने एक गुफा के भीतर पत्थर फेंका जिससे कुछ टूटने की आवाज से वह आश्चर्यचकित रह गया। उसने अपने दो रिश्ते के भाईयों खलील और मोहम्मद को बुलाया, किन्तु रात घिरने की वजह से उन्हों अगले दिन आने का फैसला किया। दूसरे दिन उन्होंने खजाना होने की सम्भावना से गुफा के द्वार, जो कि मलबा, टूटे बरतन आदि से भरे थे, हटाया। उन्हें गुफा की दीवार से लगे पतले एवं कटोरेनुमा अनेक मर्तबान दिखलाई दिये। उत्सुकतावश मोहम्मद ने प्रत्येक मर्तबान के भीतर खोजा, किन्तु आशा के विपरीत उन्हें सोना प्राप्त नहीं हुआ। परन्तु उन मर्तबानों में उन्हें कपड़े में लिपटे कुण्डल पत्रों के सात बण्डल प्राप्त हुए जो कि समय के प्रभाव से हरापन लिए हुए थे। बाद की खोजों से ज्ञात हुआ कि प्राप्त कुण्डल पत्र बाइबिल की यीशु मसीह के जन्म के सौ वर्ष पूर्व के हिब्रू भाषा की पुण्डुलिपियाँ थीं। इस आश्चर्यजनक खोज से संसार के पुरातत्ववेत्ता उत्तेजित हुए और अनुवादकों का समूह और खोजी अभियान गठित कर आगे खोज प्रारंभ की।
कुछ वर्षों तक पाण्डुलिपियाँ अपने महत्व से अनजान इन्हीं चरवाहों के पास बनी रहीं। बाद में इन्हें बेतलेहेम के दो पुराविदों को बेच दिया गया। चार पाण्डुलिपियों को अथनेसियस शेमुएल जो कि यरुशलेस के पुराने शहर में स्थित संत मरकुस मठ के सिरियन ऑर्थोडॉक्स मेट्रोपोलिटन थे, को बहुत ही मामूली राशि में बेचा गया। इसे अमेरिकन स्कूल ऑफ ओरिएन्टल रिसर्च के विद्यार्थियों द्वारा परखा गया, जिससे इसके पुरातात्विक महत्व की जानकारी उजागर हुई। जॉन ट्रेवर नामक व्यक्ति ने इन पाण्डुलिपियों के फोटो लिए और विलियम एफ. अलब्राईट नामक पुरातत्ववेत्ता ने प्रथम बार इसे ई.पू. 200 और सन् 200 वर्ष पुराने, यहूदा प्रदेश के रेगिस्तान में प्राप्त पाण्डुलिपि होने की घोषणा की। अन्य तीन पाण्डुलिपियाँ हिब्रू विश्वविद्यालय के पुरातत्ववेत्ता ई.एल. सुकेनिक (प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता इगल यदीन के पिता) को बेचा गया। उस समय अरब एवं यहूदियों के मध्य तनाव के चलते प्राप्त पाण्डुलिपियों का खुला अध्ययन खतरनाक था। अन्त में सभी पाण्डुलिपियों को हिब्रू विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त कर लिया गया। मेट्रोपोलिटन शेमुएल ने चार पाण्डुलिपियों को अमेरिका में बेचने की कोशिश की। बिक्री सम्भव न होने पर उन्होंने वाल स्ट्रीट जरनल में विज्ञापन निकाला। संयोगवश इगिल यदीन जो कि व्याख्यान के संबंध में न्यूयार्क गए हुए थे, उन्होंने विज्ञापन देखा और लगभग दो लाख पचास हजार डालर में पाण्डुलिपियों को खरीद लिया। सन् 1955 में इस्राएल के मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की कि सभी सात पाण्डुलिपियाँ (पूर्व में सुकेनिक द्वारा खरीदी तीन पण्डुलिपियों सहित) सरकार द्वारा खरीद ली गई है तथा हिब्रू विश्वविद्यालय के खास संग्रहालय में रखी गई हैं, जहाँ आज उन्हें देखा जा सकता है।
सन् 1947 में आधिकारिक तौर पर दस गुफाओं में उत्खनन कार्य प्रारंभ किया जो कि यरीहो से दक्षिण में स्थित है, छ: सौ खण्डमय चमड़े के कुण्डलपत्र प्राप्त हुए। ये आज विश्व में मृतसागर कुण्डल पत्र अथवा कुमरान कुण्डलपत्र के नाम से सुविख्यात है। प्राप्त कुण्डलपत्र हिब्रू एवं अरामी भाषा की लिपि में लिखे गए थे। इसके उपरांत सन् 1952 में अभियान दलों को हिब्रू, यूनानी एवं आरामी भाषा की लिपियों से युक्त अनेक खण्डित कुण्डलपत्र प्राप्त हुए जो कि मृत सागर के तटीय क्षेत्रों में स्थित गुफाओं में स्थित थे। इनके सघन अध्ययन से इनके तीन काल निर्धारित किए गए।
1) आर्की काल (THE ARCHAIC PERIOD) ई.पू. 200-150 वर्ष ।
2) हसमोनियन काल (THE HASMONAEAN PERIOD) ई.पू. 150-30 वर्ष।
3) हेरोद काल (THE HERODIAN PERIOD) ई.पू. 30 से सन् 70 |
यह खोज इसलिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है चूंकि तृतीय काल के दौरान यीशु मसीह इस पृथ्वी पर सःशरीर वर्तमान थे, साथ ही द्वितीय काल नए नियम की पृष्ठभूमि काल है। रेडियो कार्बन गणक से ज्ञात होता है कि प्राप्त कुण्डल पत्र लिनन के कपड़े में लिपटे हुए थे। जैसा कि ई.पू. 175 से सन् 225 के वर्षों में किया जाता था। पुरालिपिज्ञों ने इन कुण्डल पत्रों की लिपियों को पूर्व में प्राप्त मृदापत्र लिपियों से तुलना कर इन्हें ई.पू. तीसरी एवं प्रथम शताब्दी के मध्य का होना निश्चित किया।
मृतसागर कुण्डल पत्र से प्राप्त सामग्री में कुछ बाइबिल से संबंधित है एवं अन्य बाइबिल से सम्बन्धित दो कुण्डलपत्र यशायाह (एक पूर्ण), हबक्कूक 2 अध्याय (अधिकाशतः पूर्ण) एवं एस्तर की पुस्तक को छोड पुराने नियम की सभी पुस्तकें खण्डित अवस्था में पायी गई। पंचग्रन्थ (Pentateuch) एवं यशायाह की अधिकांश पुस्तकों की क्षतिपूर्ति कर ली गई। किन्तु भजन संहिता, यिर्मयाह एवं दानियेल की पुस्तकों की अंशमात्र ही क्षतिपूर्ति सम्भव हो पायी।
यशायाह की पुस्तक (कुण्डल पत्र)
यह कुण्डल पत्र कुमरान नामक स्थान में पाया गया। यह हजारों वर्षों से चले आ रहे मसूरी हिब्रू बाइबिल (Masoretic Hebrew Bible) के रूप में संरक्षित है। इसका महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है चूंकि आज उपलब्ध सभी अनुवादित बाइबिल का आधार यही बाइबिल है। यशायाह की पुस्तक का यह कुण्डल पत्र का काल निर्धारण ई.पू. 150-125 किया गया है। उपलब्ध सभी भाषाओं की बाइबिल में यही पाण्डुलिपि सबसे पुरानी है।
प्राप्त हबक्कूक पुस्तक का कुण्डलपत्र मुख्यतः टीका (Commentary) है। अतः इससे मसीही धर्म के उदय के पूर्व यहूदी एवं असेनी सम्प्रदाय के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।
प्राप्त कुण्डलपत्रों में से हिब्रू विश्वविद्यालय यरुशलेम ने, यशायाह के एक अन्य कुण्डल पत्र 'प्रकाश एवं अन्धकार के पुत्रों के मध्य युद्ध' नामक दस्तावेज परम्परागत हिब्रू के तथ्यों की पुष्टि हेतु खरीदा। इन दस्तावेजों का संयोजन प्रमाणित रूप से मकाबी संघर्ष के दौरान मूर्तिपूजक विधर्मियों के विरूद्ध ई.पू. 158-137 के मध्य उपयोग किया गया।
सन् 1949 के शीत ऋतु में पलस्तीन के दो पुरातत्ववेत्ता पियरे द वाक्स एवं लंकेस्टर हार्डिन ने उस खोह अथवा गुफा में उत्खनन कार्य प्रारम्भ किया जिसमें प्रथम कुण्डल पत्र प्राप्त हुए थे। उत्खनन के दौरान खण्डित अवस्था में उत्पत्ति, व्यवस्थाविवरण, न्यायियों की पुस्तक एवं लैव्य व्यवस्था आदि की पुराने हिब्रू भाषा में लिखित प्रतियाँ प्राप्त की गई। बाइबिल के अतिरिक्त पुस्तकों में जुबली की पुस्तक जो हनोक साहित्य से संबंधित है, पायी गई
सन् 1952 में मुराब्बात नामक स्थान में एक गुफा की छानबीन के दौरान अधिक मात्रा में ईसा पश्चात् द्वितीय शताब्दी के हिब्रू, यूनानी एवं अरामी दस्तावेज तथा कुछ मात्रा में उत्पत्ति, निर्गमन, व्यवस्थाविवरण तथा यशायाह के भाग प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त काफी मात्रा में शिमौन बेन केसबा जो कि बार कोचबा भी कहलाता था, जिसने 132-135 के क्रांति का नेतृत्व किया था, के समयकाल के हिब्रू पत्र भी प्राप्त हुए। अल्प मात्रा में हिब्रू पेपीरस के टुकड़े, एक चर्मपत्र एवं एक नामों तथा अंकों की सूची थी, प्राप्त की गई, जो कि ई.पू. छटवीं शताब्दी के माने जाते हैं।
इसी क्षेत्र (किरबत मिर्ड) की अन्य गुफाओं से अरबी पेपीरस पत्र, यूनानी एवं क्रिस्तो-पलस्तीन सीरिया के दस्तावेज एवं खण्डित अवस्था में बाइबिल की हस्तलिखित प्रति (Codices) जो बिजातियन एवं अरबी थी, पायी गई। अन्य दस्तावेज जिसे मुराब्बात नाम से जाना जाता है, काफी मात्रा में प्राप्त हुए। उपरोक्त में क्षुद्र भविष्यद्वक्ताओं का यूनानी अनुवाद एवं मबेतीन का ग्रंथ संग्रह आदि बाइबिल एवं एतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
किरबत कुमरान उत्खनन
किरबत कुमरान यरीहो से सात मील दक्षिण में, मृत सागर के किनारे स्थित है, जहाँ असेनी समुदाय के लोग गुफाओं में रहते थे। उत्खनन कार्य सन् 1951 एवं 1954 के मध्य किया गया। असेनी समुदाय के सदस्य इन दस्तावेजों की प्रतियाँ, गुफा में अपने साथ छुपाकर रखते थे। निकट ही फरीसी एवं सदूकी सम्प्रदाय के सदस्य भी निवास करते थे। किरबत कुमरान की खोज यह प्रमाणित करती है कि किसी समय यह असेनियों के निवास का केन्द्र रहा। उत्खनन से प्राप्त सिक्के, पात्र एवं पुरातत्व महत्व की सामग्रियाँ वहाँ के व्यवसाय के विषय में बतलाती है।
इस खोज को हम चार समय कालों में विभाजित कर सकते
प्रथम काल : ई.पू० 110 के शासक यूहन्न हिरकेनस के समयकाल के अनेक सिक्के एवं अन्य हसमोनियन शासक एनटीगोनस (ई.पू. 40-37) जो कि इस क्रम में अन्तिम शासक थे (हेरोद राजा के सातवें वर्ष सन् 31) के सिक्के प्राप्त किए गए। इन्हीं वर्षों में भूकम्प के कारण यह क्षेत्र समतल हो गया। उत्खनन में प्रमाण मिलते है कि राजा हेरोद के शासनकाल में इस स्थान पर उनका भारी विरोध रहा।
द्वितीय काल : ई.पू. 1 में कुमरान अपनी उन्नति पर था तथा रोमियो ने जून 68 में इसका विनाश किया। इस दौरान यीशु मसीह, यूहन्ना बपतिस्मादाता एवं प्रेरित आदि भी जीवित थे। इसी समय यहूदियों में से प्रारम्भिक मसीहियों का प्रार्दुभाव हुआ एवं प्रारंभिक कलीसियाओं की स्थापना भी की गई। आर्किलास के शासनकाल (ई.पू. 4से सन् 6) एवं प्रथम यहूदी क्रांति सन् 66-70 के सिक्के भी प्राप्त हुए। इसी दौरान रोमी सेना द्वारा यरीहो विजय (सन् 68) के समय कुमरान पर भी अधिकार किया गया। एक सिक्का x चिन्ह युक्त प्राप्त हुआ जिसका अर्थ दसवीं सैन्य टुकड़ी माना गया। लोहे के तीरों के सिरे भी खोज के दौरान राख में दबे पाये गये।
तृतीय काल : कुछ सिक्के तीतुस के राज्य काल सन् 79-81 के प्राप्त हुए हैं। इस बात के पक्के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं कि सन् 70 के पश्चात् कुमरान में स्थित भवनों को सैन्य बेरिक में बदल दिया गया, जहाँ रोम सैन्य अधिकारी सन् 68-100 तक रहे।
चतुर्थ काल : द्वितीय यहूदी क्रांति के समय कुमरान का व्यवसाय पुनः प्रारंभ हुआ (सन् 132- 135) प्राप्त सिक्कों से यह जानकारी मिलती है कि यहूदियों ने कुमरान में रोमियों को देश छोड़ने हेतु अन्तिम बार प्रयास किया।
कुमरान में सबसे भव्य 100 फीट x 120 फीट का सामुदायिक केन्द्र है। उत्तर-पश्चिम कोने में रक्षा हेतु मीनार है, जिसकी दीवारें मोटी एवं पत्थर से जड़ी हैं। कुछ सिक्कों के आधार पर, ये रोमन शक्ति के विरोध में स्थापित किए गए थे। मुख्य भवन में एक बड़ा सामान्य सा बैठक कमरा था। यहीं पर पाण्डुलिपियों को रखने का निश्चित स्थान भी स्थित था। अनेक दवात एवं सूखी स्याही, समाज द्वारा दस्तावेजों की नकल करने की पुष्टि करती है। भवन में दो पानी की टंकियाँ भी पलस्तर की हुई पायी गई, जिनका उपयोग बपतिस्मा के लिए किया जाता था। चालीस टंकियों का समूह भी पाया गया, जिनका प्रयोग गर्मी एवं शुष्क मौसम में जल भण्डारण हेतु किया जाता था।
पुरातत्ववेत्ता दे वॉक्स ने लगभग 1000 कब्रे खोजी, जिसमें दफनाये गये व्यक्ति बिना किसी आभूषण अथवा विलासिता की वस्तुओं के दफनाये गये थे।
किरबत कुमरान एवं असेनी
किरबत कुमरान एवं अन्य उत्खनन से यह ज्ञात होता है कि किरबत कुमरान असेनियों का धार्मिक मुख्यालय था। तीन समकालीन व्यक्ति युसुफस, फिलो एवं प्लिनि, धार्मिक मुख्यालय होने जैसे सत्य की गवाही देते हैं। प्लिनी ने मृत सागर के पश्चित में असीनियों का पाया जाना बतलाया। उन्होंने निर्दिष्ट किया कि एन-गेदी नगर, असेनियों के (किरबत कुमरान) निचले भाग में स्थित है। युसुफस ने व्यापार एवं सामाजिक जीवन में असेनियों के निःस्वार्थ होने की बात लिखी। वे कठोर परिश्रमी लोग थे तथा सदा श्वेत वस्त्र धारण करते थे। युसुफस आगे लिखते हैं कि असेनी अपने सम्प्रदाय में शामिल करने के पूर्व तीन वर्ष का कठिन धार्मिक प्रशिक्षण देते थे। उन्होंने असेनियों के ब्रह्मचर्य, धर्मनिष्ठा, दोष सिद्धि, अमरत्व एवं धार्मिकता के लिये दिये जाने वाले पुरस्कार के विषय में भी लिखा।
धर्म वैज्ञानी फिलो ने भी उपरोक्तानुसार वर्णन किया। कुमरान में स्थित पुस्तकालय के बाइबिल तथा साहित्य, वहाँ कि निवासियों के लिए बड़े आनन्द के कारण थे। असेनी इन धार्मिक पुस्तकों की नकल बनाने एवं उन्हें संरक्षित करने में काफी कठिन परिश्रम करते थे।
कुमरान के असेनी और यूहन्ना बपतिस्मादाता
लूका रचित सुसमाचार 1:80 के अनुसार “और वह बालक (यूहन्ना बपतिस्मादाता) बढ़ता और आत्मा में शक्तिशाली होता गया। वह इस्रायली समाज के सामने प्रकट होने के दिन तक निर्जन प्रदेश में रहा।" यूहन्ना बपतिस्मादाता के माता-पिता का पैत्रिक निवास पहाड़ी क्षेत्र के यहूदा प्रदेश का (लूका 1:39, 40, 65)। उपरोक्त कथनानुसार एवं चूँकि असेनी कुमरान के पहाड़ी क्षेत्र में बसे हुए थे, अतः माना जा सकता है कि यूहन्ना बपतिस्मादाता का संबंध असेनी सम्प्रदाय से रहा। यूहन्ना बपतिस्मादाता के रहन-सहन एवं जीवनचर्या भी असेनी सम्प्रदाय से काफी मेल खाती है। यूहन्ना बपतिस्मादाता ने जो कहा “प्रभू का मार्ग” “मन फिराव का बपतिस्मा” (यशा. 43:3, लूका 3:3, 4), कुमारन के निवासियों में भी यह विशेषता थी। किन्तु यूहन्ना ने पूर्व में ही महसूस कर लिया था कि असेनियों में कुछ गुण ऐसे हैं जिसके कारण मसीहा के आगमन को वे स्वीकार नहीं कर पायेंगे। अतः उन्होंने स्वतंत्र रूप से यरदन नदी के फिराने अपने प्रचार करने, मन फिराने तथा बपतिस्मा देने की सेवकाई प्रारंभ की। यूहन्ना के प्रचार में स्थित मन फिराना (मत्ती 3:2; मर 1:4; लूका 3:3) कुमरान के धर्मविज्ञान में मुख्यतः पाया जाता था। वे स्वयं मन फिराव की वाचा के स्थान में रखते एवं इस्राएल का पश्चाताप कहते थे। यूहन्ना द्वारा दिया गया पानी का बपतिस्मा, असेनियों में पहले से ही प्रचलित था। मसीह के आगमन पर उसे पहचानने हेतु यूहन्ना का बपतिस्मा भीतरी आत्मा में एक बाहरी चिन्ह स्वरूप था। बपतिस्मा कुमरान वासियों के मध्य एक आवश्यक धार्मिक कृत्य था, जिसे लेने के पश्चात वे कठोरता से स्वयं को उन लोगों से पृथक कर लेते थे जो उनके समाज का नहीं होता था। उन विधर्मियों को वे अन्धकार का पुत्र अथवा 'बलियाल' कहते थे। वे स्वयं को सच्चा इस्राएली मानते और नियम के अनुसार जीवन व्यतीत करते थे। यूहन्ना बपतिस्मादाता ने पवित्र आत्मा और आग के बपतिस्मा के बारे में भी कहा (मत्ती 3:11)। यहाँ आग के बपतिस्में का तात्पर्य, परलोक विद्या के अनुसार, बिना मन फिराये लोगों (विद्यार्मियों) के लिए न्याय से है। कुमरान के एक धार्मिक गीत में भी पाया जाता है कि 'क्रोध की अग्नियुक्त नदी, जातिच्युत व्यक्तियों तथा क्रोध के समय सभी बलियाल पर बहेगी'।
दूसरी ओर ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा देना' में भविष्यवाणी की गई कि जो मन फिरायेगा और आने वाले मसीह को स्वीकार करेगा (यू. 1:33), उसे दिया जायेगा। कुमरान साहित्य के अनुसार सिर्फ परमेश्वर ही नहीं अपितु मसीह भी, जो कि सच्चाई की आत्मा है, पानी के द्वारा सभी घृणित वस्तुओं, झूठ एवं अशुद्धि की आत्मा से साफ करेगा एवं मसीहा अपने लोगों पर अपनी आत्मा छिड़केगा, और वे उसके अभिषिक्त होंगे
कुमरान के लोग आत्मकेन्द्रित, साम्प्रदायिक, दोष सिद्धि का प्रचार करने वाले लोग थे। वे अपने धर्म में प्रशिक्षित करने हेतु बच्चों को दत्तक लेते थे। यूहन्ना बपतिस्मादाता सम्मान पूर्वक मसीह का रास्ता सुधारने वाले और उसमें आगे आने वाले बने। किन्तु कुमरान समाज, मसीहा के आगमन पर उसे पहचान और स्वीकार न कर सके। उनके तापसिक (तपोमय) स्वभाव ने उन्हें मृत्यु की ओर ढकेल दिया। उन्हें क्षमा नहीं प्राप्त हुई। जैसा कि यूहन्ना 1:29 में कहा गया कि 'देखो यह परमेश्वर का मेमना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है।
असेनी और यीशु मसीह
यद्यपि कुमरान समाज भी मसीहा के आगमन में प्रतीक्षारत् था। किन्तु जैसा कि पुराने नियम में मसीह के आगमन के विषय में वर्णन पाया जाता है, उससे भिन्न आशा थी। वे मसीहा को राजा एवं पुरोहित दोनों के संयोजन को एक ही व्यक्ति में समावेश कर नहीं देख पाये, जैसा कि जकर्याह 6:9-15 में पाया जाता है। न ही उन्होंने इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा एक नबी अथवा भविष्यद्धक्ता भी होगा, जैसा कि व्यवस्था विवरण पुस्तक में मसीहा के विषय में भविष्यवाणी की गई कि "मै उनके लिए उनके भाईयों के बीच में से तेरे समान एक नबी का उत्पन्न करुंगा; और अपना वचन उसके मुँह में डालूँगा; और जिस-जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको सुनाएगा। जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा, ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब लूंगा (व्य. 18:18, 19)।" कुमरान समाज का महान पुरोहित, सेनापति, इस्राएल का मसीहा, नबी सब कुछ हारुन थे। इनसे हटकर मसीहा, इन्हीं गुणों से सुशोभित एक अलग व्यक्तित्व की वे कल्पना न कर सके।
कुमरान साहित्य की कुछ शिक्षा एवं संगठन, यीशु मसीह की मत्ती 18:15-17 में स्थित शिक्षाओं एवं प्रारंभिक कालीसिया स्थापन से काफी कुछ एक रूप है। इसे हम सुसमाचार के अनेक वृत्तांतों की पृष्ठभूमि में आसानी से देख सकते हैं। प्रभु भोज, पहाड़ी उपदेश एवं पृथ्वी पर यीशु मसीह के जीवन एवं उनके सेवाकार्य में कुमरान के प्रभाव की झलक मिलती है। फिर भी यह सुस्पष्ट है कि यूहन्ना बपतिस्मादाता एवं यीशु मसीह अपने आप में बेजोड़ और अद्वितीय थे। मसीहियत का विकास विधिवत बाइबिल के पुराने नियम पर आधारित है, न कि मसीह के पूर्व के प्रेरितिक इतिहास अथवा सच्चाईयों पर।
संक्षिप्त में मृतसागर (कुमरान) कुण्डलपत्रों का विवरण :
प्रथम खोह से प्राप्त कुण्डल पत्रों (Cover One) के अन्तर्गत प्राप्त सात मूल कुण्डल पत्र रखे गये हैं।
(1) यशायाह की भविष्यवाणियाँ : इस कुण्डल पत्र में अच्छी तरह संरक्षित यशायह नबी की भविष्यवाणियाँ स्थित हैं। यह आज तक खोजी गई पुराने नियम की सबसे पुरानी प्रति है।
(2) यशायाह की पुस्तक : यह खण्डित अवस्था में पायी प्रति है।
(3) हबक्कूक : इसमें हबक्कूक की पुस्तक का प्रथम दो अध्याय की व्याख्या स्थित है तथा रूपकाव्य शब्दों में कुमरान के लोगों के भाई चारे का वर्णन है।
(4) सामाजिक नियम : इसमें कुमरान समाज के धार्मिक नियम स्थित हैं। दूसरे समाज अथवा धर्म से कुमरान समाज में शामिल होने के लिए आवश्यक शर्ते तथा नियम के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन है।
(5) स्तुति गान : इसके अंतर्गत अनेक धन्यवाद भजन एवं परमेश्वर की महिमा, प्रशंसा के गीत आदि पाये गये।
(6) उत्पत्ति की पुस्तक : उत्पत्ति पुस्तक की अरामी भाषा में भावानुवाद पाया गया।
(7) युद्ध नियम : इसके अन्तर्गत प्रकाश के पुत्र (कुमरान के लोग) एवं अंधकार के पुत्र (रोमी अथवा मूर्ति पूजक) के मध्य युद्ध, जिसमें न्याय, अन्तिम दिन जो कि शीघ्र आने वाला है, में होगा।
उपरोक्त सात पाण्डुलिपियाँ प्रमुख हैं, जिसमें अतिरिक्त ग्यारह लेखों (गुफाओं) से लगभग छ: सौ पाण्डुलिपियाँ प्राप्त की गई हैं। जिनमें एक ताम्र कुण्डल पत्र भी प्राप्त हुआ है, जिसमें यहूदा प्रदेश में स्थित साठ खजानों के विषय में वर्णन स्थित है। इसमें से एक खजाना भी अभी तक खोजा नहीं जा सका। इसके अतिरिक्त एक मंदिर में किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान का विवरण युक्त कुण्डलपत्र भी प्राप्त हुआ। प्राप्त कुण्डलपत्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इसमें रचेयता प्रमुखतः याजक रहे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन परमेश्वर को समर्पित कर रखा था। कुमरान समाज का नेतृत्व धार्मिक शिक्षकों के हाथ में था वे अपने आपको सच्चे अर्थों में नियम को मानने वाले और सच्चे इस्राएली मानते थे।
(Credit: Archaeology and The Bible )
(Auther: Jonson Paul)
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