नाइसिन विश्वासघोषणा क्या है (Nicene Creed)
(स्रोत: https://www.neverthirsty.org/bible-qa/qa-archives/question/what-is-the-nicene-creed-of-a-d-325/ से संक्षिप्त सार)
नाइसिन विश्वासघोषणा के तीन रूप रहे हैं: मूल नाइसिन, विस्तारित कॉन्स्टैन्टिनोपल संस्करण, और एक लैटिन (पश्चिमी) संस्करण। इसका पहला प्रारूप ईस्वी 325 में निकेआ नामक स्थान पर हुई एक महासभा द्वारा अंगीकृत किया गया। इस सभा में 318 पूर्वी बिशप उपस्थित थे, केवल होसियुस नामक बिशप स्पेन से थे। इस विश्वासघोषणा का उद्देश्य एरियन विवाद को सुलझाना था। यह विवाद इस झूठी शिक्षा पर आधारित था कि यीशु मसीह परमेश्वर नहीं हैं, बल्कि केवल एक सृजित प्राणी हैं। एरियुस सिखाता था कि मसीह पिता परमेश्वर के समान तत्व या स्वरूप (heteroousios) के नहीं हैं।
नाइसिन विश्वासघोषणा – ईस्वी 325
हम एक परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जो सर्वशक्तिमान पिता हैं, स्वर्ग और पृथ्वी तथा सभी दृश्य और अदृश्य वस्तुओं के सृष्टिकर्ता हैं।
और एक प्रभु यीशु मसीह में, जो परमेश्वर के एकमात्र उत्पन्न पुत्र हैं, पिता से उत्पन्न, ज्योति से ज्योति, सच्चे परमेश्वर से सच्चे परमेश्वर, उत्पन्न हुए हैं, बनाए नहीं गए, और पिता के समान तत्व में हैं। उन्हीं के द्वारा सारी सृष्टि रची गई।
वे हमारे उद्धार के लिए स्वर्ग से उतरे, देह धारण की, और मनुष्य बन गए। उन्होंने दुःख सहा, और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठे। वे स्वर्ग पर चढ़े, और वहीं से वे जीवितों और मरे हुओं का न्याय करने के लिए फिर आएंगे।
और हम पवित्र आत्मा में विश्वास करते हैं।
बाद में ईस्वी 381 में इस विश्वासघोषणा में यह जोड़ा गया कि पवित्र आत्मा भी पूर्ण रूप से परमेश्वर हैं। इन तीनों घोषणाओं का उद्देश्य किसी नई शिक्षा की रचना करना नहीं था, बल्कि बाइबल आधारित सत्य की पुष्टि करना था ताकि एरियुस की झूठी शिक्षा का खंडन किया जा सके। इस संशोधित विश्वासघोषणा को रोमन कैथोलिक कलीसिया ने अंतिम रूप में स्वीकार किया, और आज भी अनेक कलीसियाएं इसे अपने विश्वास की घोषणा के रूप में पढ़ती हैं।
यह विश्वासघोषणा यूहन्ना 1:1-2 और फिलिप्पियों 2:5-7 की सच्चाई को दृढ़ता से प्रकट करती है कि यीशु मसीह परमेश्वर हैं और सदा से परमेश्वर रहे हैं।
"आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। वही आदि में परमेश्वर के साथ था।" — यूहन्ना 1:1-2
"तुम्हारा स्वभाव वैसा ही हो जैसा मसीह यीशु का था। यद्यपि वे परमेश्वर के स्वरूप में थे, फिर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने अधिकार की वस्तु न समझा, परंतु अपने आप को रिक्त करके दास का रूप धारण किया और मनुष्यों के समान बन गए।" — फिलिप्पियों 2:5-7
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