एलीफेन्टाईन का पेपीरस पत्र

 एलीफेन्टाईन का पेपीरस पत्र

(THE ELEPHANTINE PAPYRI)
यह पेपीरस पत्र सन् 1903 में नील नदी के एलीफेन्टाईन नामक द्वीप समूह से प्राप्त किया गया, जहाँ यहूदी सेना की बस्ती हुआ करती थी। ये आज ब्रोकलिन संग्रहालय में संग्रहित है। इस दस्तावेज से ई.पू. 5वीं शताब्दी के फारसी सम्राटों की झलक मिलती है। यह अरेमिक भाषा में अंकित है, जो कि एक समय पश्चिम एशिया एवं फारस की वाणिज्यिक भाषा थी कलांतर में इसका स्थान हिब्रू भाषा ने ले लिया, जो यहूदियों में प्रचलित थी। इस पेपीरस पत्र से यहूदियों के विवाह अनुबन्धों एवं ई.पू. 411 के यहूदी उत्पीड़न की जानकारी प्राप्त होती है इस पत्र से यह भी ज्ञात होता है कि यहूदी समुदाय, याव्हे (यहोवा) नामक ईश्वर की आराधना करते थे।
बाइबिल महत्व
प्राप्त एलीफेन्टाईन पेपीरस द्वारा यह ज्ञात होता है कि यहूदियों का मंदिर ध्वस्त होने के उपरांत उसका पुनः निर्माण किया गया, जो कि बाइबिल सम्मत है। इसमें यह भी पाया जाता है कि याव्हे वह ईश्वर है जो येब में निवास करता और गढ़ है (भ.सं. 31:3 से तुलना करें)। इस पेपीरस पत्रानुसार अर्ताजेरेसस द्वितीय (ई.पू. 404-359) के समय काल में मिस्त्र, फारस के अधीन रहा।
उक्त आधार पर यह सुनिश्चित होता है कि एलीफेन्टाईन के पेपीरस पत्र, भविष्यद्वक्ता एज्रा एवं नेहम्याह के समय काल की एवं बाइबिल आधारित घटनाक्रम की पृष्ठभूमि का वर्णन तथा पुष्टि करती है। इससे यहूदियों की जीवन शैली, उनके तितर-बितर होकर मिस्र के एलीफेन्टाइन नामक स्थान में एकान्तवास आदि की जानकारी एवं उस समय की यहूदियों की भाषा, रीति-रिवाज एवं नाम जो कि बाइबिल में पाये जाते हैं, आदि का ज्ञान प्राप्त होता है

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