पवित्र शास्त्र की अचुकता और अधिकृतता – बाइबल के सच्चे होने के सबुत

पवित्र शास्त्र की अचुकता  और अधिकृतता – बाइबल के सच्चे होने के सबुत



अ. सटीकता

पवित्रशास्त्र की ईश्वर प्रेरित लेखन और अधिकार आपको आश्वस्त करते हैं कि पवित्रशास्त्र अचूक हैं। यानी इसमें कोई गलती नहीं हो सकती। यह हमें गुमराह नहीं करता, धोखा नहीं देता और निराश नहीं करता। (2 शमू. 7:28, भजन संहिता 119:43,60 यूहन्ना 17:19, कुलुस्सियों 1:5)

पवित्रशास्त्र की सटीकता और अधिकार पर आपत्ति मानव अविश्वास के द्वारा की गई है। ज़्विंगली, केल्विन और मार्टिन लूथर जैसे समाज सुधारकों ने पवित्रशास्त्र के पूर्ण अधिकार और सटीकता को स्वीकार किया।

1874 में जे. डब्ल्यू हाले ने उन कारणों का गहन अध्ययन किया और बताया की क्यों लोगों को शास्त्रों के सटिकता के बारे में जो गलत धारणा हैं?  

उसके जो कारण है वह इस प्रकार हैं।

1.      बाइबल के संदर्भ को ध्यान में न रखना.

2.    बाइबल के शब्द और संज्ञाओं की गलत व्याख्या करना

3.    प्राचीन संस्कृति, रित रिवाज, भौगोलिक स्थिति की जानकारी न होना.

4.    बाइबल में कौन क्या कह रहा है उसे ध्यान में न रखना.

5.    कुछ घटना संक्षिप्त में दी गई है तो कही पर विस्तृत में यह ध्यान में न रखना

6.    काल गणना की पद्धति जैसे यहुदी, पर्शियन, रोमी पद्धति में फरक का पता न होना.

7.     अंक संबंधी अंतर के कारण को न समझना. जैसे कुछ लेखक पुर्णांक संख्या प्रस्तुत करते है तो कुछ सटीक संख्या, यह लेखक के उद्देश्य पर निर्भर था।

8.    बाइबल के हस्तलिपियों में नकल करते समय गलतियाँ हुई। ज्यादातर संख्यात्मक गलती उसका एक उदाहरण है। लेकिन बाइबल के मुख्य अभिप्राय और उद्देश्य में इसका कोई परिणाम नहीं होता।

9.    इब्रानी और ग्रीक भाषा के शब्दों के अर्थ के गहराई के कारण अनेक लोग प्रश्न उपस्थित करते है।  

ब. अधिकारिकता /सत्यता

क्या आज हमारे पास जो पवित्र शास्त्र है वह ठीक वैसा ही जैसे भविष्यद्वक्ता और प्रेरितों ने लिखा था, या समय के चलते, जानबूझकर उमसे किसी ने बदलाव किये, या बदलाव आ गये। आये पवित्र शास्त्र के अधिकारिता और सत्यता के बारे में जाने///

आरम्भिक कलिसिया के अगुवे

दिदखे, इग्नासियस, पॉलिकॉर्प, संत क्लेमेंट, टर्टुलियन, संत जेरोम, ऑगस्टीन आदि प्रारम्भिक कलिसिया के अगुवों के लेखों में हम नये और पुराने नियम के उद्धरण दिए  पाते है। आज जो हमारे पास पवित्र शास्त्र है उस में और प्रारंभिक अगुवों के लेख में उद्धत पवित्र शास्त्र के दिये हुए संदर्भ में किसी भी प्रकार का विरोधाभास नजर नहीं आता। विद्वानों के अनुसार पहले तीन शताब्दी में लिखे गये मसीही लेखों में से हम पुरे नये नियम को फिर से प्राप्त कर सकते है। इस प्रकार से साबित होता है की पवित्र शास्त्र में किसी भी प्रकार का बदलाव या  

क. पाण्डुलिपिया

नये नियम के लगभग 2500 और पुराने नियम के 10000 से भी ज्यादा खंडित हस्तलिपिया खोजी गई है जो किसी भी अन्य धर्मग्रंथ, प्रसिद्ध किताब से कई अधिक मात्रा में है। किसी भी अन्य धर्मग्रंथ के तुलना में मुल हस्तलेख का वास्तविक घटना का लेखन उसे घटने के बाद सबसे नजदीक समय में लिखा गया है। लिखने वाले लगभग सभी प्रत्यक्षदर्शी थे।

प्राचीन पांडुलिपियाँ :

1629 से 1947 के काल में बहुत सी प्राचीन पांडुलिपियाँ खोजी गई। जिससे पवित्र शास्त्र की प्रामाणिकता बढी।

मिस्र में खोज।

सी दौरान मिस्र में नये नियम के सौ से भी अधिक पांडुलिपियाँ पाई गई।

 

कोडेक्स अलेक्झांड्रीनस:

नये नियम की पूर्ण संरक्षित प्रति लिपी जो अंदाजन ईस्वी सन 400 की होने की संभावना है। जो पश्चिमी विद्वानो के अध्ययन के लिये  1629 में उपलब्ध की गई।

 

कोडेक्स सिनाइटिकस (ईस्वी सन 350):

यह पांडुलिपि सिनाई पर्वत के पास सेंट कॅथरिन के मठ में पाई गई थी, जो नये नियम की सबसे पुरानी संपूर्ण आवृत्ति है।

संशोधित संस्करण (1885) :

  1870 में विद्वानों ने तय किया की, प्राप्त पांडुलिपियाँ के आधार पे, किंग जेम्स संस्करण को संशोधित किया जाए। उनका उद्देश्य था की पुराने इब्रानी और ग्रीक के आधार पर एक बेहतर अनुवाद मिले।

 

  कोडेक्स वेटिकॅनस:

  1889 में विद्वानों के लिये इस पांडुलिपि को अध्ययन के लिये दिया गया, यह ईस्वी सन 350 के आसपास की सबसे अच्छे अवस्था में पाई गई पांडुलिपि है। यह पांडुलिपि वॅटीकन ग्रंथ संग्रहालय में है।

 

मृत सागर कुण्डल

1947 में एक चरवाहे को मृत सागर के आसपास एक गुफा मिली। जिसमें पुराने नियम के प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियाँ मिली जो ईस्वी सन पूर्व 200 से ईस्वी सन 100 के दरम्यान की थी। यहाँ पर मिली यशयाह की पूर्ण संरक्षित इब्रानी किताब की प्रति और आज के पवित्र शास्त्र में स्थित यशयाह के इब्रानी किताब में अभूत पूर्व समानता है।

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