हासोर
पुरातन नगर हासोर दो अर्न्तराष्ट्रीय व्यापार मार्ग के चौराहे पर स्थित है, जोकि लगभग 200 एकड़ क्षेत्र में है। इसका आधुनिक नाम तेल-एल-केदाह है। सन् 1928 में गारस्टेन्ग द्वारा सरसरी तौर पर निरीक्षण किया गया, जिसमें उन्होंने पाया कि हासोर नगर यहोशू द्वारा लगभग ई.पू. 1400 में नष्ट किया गया इस संक्षिप्त खोज में इससे अधिक जानकारी प्राप्त न हो सकी।
सन् 1955 में प्रोफेसर वाई. यदीन द्वारा उत्खनन कार्य किया गया। यह उत्खनन कार्य काफी लम्बे समय तक चला, जिसमें 200 मजदूर, 45 पुरातत्ववेत्ता, भवन निर्माता, चित्रकार, फोटोग्राफर एवं विद्यार्थी शामिल थे। मौके का स्थान प्रत्यक्ष रूप में दो भागों में बाँटा जा सकता था। प्रथम दुर्ग का स्थान, जोकि 120 फीट ऊँचाई पर 25 एकड़ में फैला हुआ, दूसरा नीचे उत्तर की ओर आयताकार मैदान जोकि 175 एकड़ क्षेत्र में स्थित था, जिसे शिविर लगाने एवं निवास करने हेतु उपयोग किया जाता था।
सम्पूर्ण नगर दुर्ग और उसकी मजबूत दीवार से घिरा हुआ था। और चौड़ी थी। दुर्ग के स्थान पर 10 बार नगर को बनाने के प्रमाण प्राप्त हुए। एक भव्य फाटक भी पाया गया जैसा कि मगिद्दों एवं गेज़ेर में प्राप्त हुआ था। डॉ. यदीन ने निष्कर्ष निकाला कि इस्राएली दुर्ग वाले क्षेत्र में लगभग 25 एकड़ में निवास करते थे।
पुराने नियम में स्थित नगर निचले आयताकार मैदानी भाग में 55x80 फीट का एक कनानी मंदिर पाया गया, जिसके परम पवित्र स्थान में अनुष्ठान के उपकरण पाये गये। मंदिर में ही मिस्र के राजा अमनहोतेप तृतीय (ई.पू. 1413-1376) की मुद्रा (Seal) भी पायी गयी। दुर्ग के स्थान पर राख, कोयले एवं अनेक खण्डमय वस्तु पाये गये, जिसे राजा तिगलत-पिलेसर (ई.पू. 733) के समय नगर के नष्ट होने का प्रमाण माना गया। अनेक बर्तन भी पाये गये जिसकी स्थिति से यह परिणाम निकलता है कि विनाश अचानक ही हुआ।
हासोर एक मुख्य नगर था, जिसका वर्णन बाइबिल में यहोशू द्वारा इस नगर के जीते जाने स्वरूप वर्णित है (यहोशू 11:10)। राजा सुलैमान द्वारा भी हासोर नगर को दृढ़ करने हेतु लोगों को बेगारी में रखने का वर्णन पाया जाता है (1 राजा 9:15)
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