इस्राएलीयों के मिस्र में निवास के पुरातत्व सबुत

 इस्राएलीयों के मिस्र में निवास के पुरातत्व सबुत

पवित्र शास्त्र के अनुसार इब्री लोगो ने नाईल नदी के त्रिभुज प्रदेश में वास किय जो उत्तर पूर्व में था। जिसे रामासेस नामक प्रदेश कहा गया है। (उत्पत्ती) साथ ही वे गोशेन में भी रहे ( उत्प 45:10, 47:4, 6, निर्ग 8:22, 9:26)
कनान से मिस्र में परदेशीयो के प्रवेश के सबुत
यह पेंटिग (चित्र 1 और 2 देखे ) 19 शताब्दी ई. स. पू की जो 37 एसॅटिक्स मिस्र में प्रवेश करने की अनुमति मांग रहे है। (भितचित्र नोमाख ख्नुम-होतेप के मखबरा)
अनास्टासि पपारस का लेख (फारो मेर्नेप्तह के समय ई.स.पू. 1213-1203) में एक रिपोर्ट दर्ज है, जो बताती है की कनान और आसपास के प्रदेश से परदेशी अपने जानवरो के लिये चारे और पानी के लिये नाईल नदी के मिस्र के प्रदेश में आते थे। और उनमें से कई वही पर बस गये। पुरातत्व सबुत से यह भी पता चलता है की ई. स. पू. 1650 -1540 के बिच भी अनेक परदेशी कनान से मिस्र में आकर बस गये।
यह सारे सबुत हमारे सामने याकुब और उसके वंशज के मिस्र में प्रवेश चित्र को उत्पन्न करते है। की कैसे वे अन्न और चारे के लिये मिस्र में आकर बस गये।
कठिण परिश्रम और गुलामी
निचे दी गई तस्वीर (चित्र 3) ‘ एक गुफा चित्र है जो 1500 ई. स. पू. की है जो रेखमिरे के मखबरे में मिली है, जिस में हम स्पष्ट रुप से देख पाते है की किस प्रकार से परदेशी गुलामो के द्वारा ईटों को बनाया जाता है और कैसे वे बांधकाम में इस्तेमाल किये जाते थे।
हम इस चित्र (चित्र 3 देखे) में और पवित्र शास्त्र जो उल्लेख है उसमें समानता पाते है। निर्गमन 1:14 और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भाँति-भाँति के काम की कठिन सेवा से दु:खी ; जिस किसी काम में वे उनसे सेवा करवाते थे उसमें वे कठोरता का व्यवहार करते थे।
निर्गमन की किताब इस्राएली लोगो के कठीण परिश्रम और दुखो का वर्णन करता है। ईंट और खेती के भाँति-भाँति के काम’ शोधकर्ताओ को ऐसे अनेक भित्तचित्र और मखबरे में के लेख मिले है जो इस वचन की पृष्टी करता है।
प्रोटो-कनानाईट लेख इस बात की पृष्टी करता है की ‘ईटे इब्री गुलामों के द्वारा बनाई जाती थी’
‘पहेरिपेड्जेट पासेर का बेटा’ (“Paherypedjet son of Paser”) जो एक ईटे बनाने वालो का ठेकेदार (मुकादम) हुआ करता था, हम एक चमडे के स्क्रोल (चित्र 4 ) में रिपोर्ट पाते है की उसने 2000 ईटों की आपुर्ती कम की। यह स्क्रोल रामासेस द्वितिय के पाचवे वर्ष के राज्यकाल से है। यह निर्गमन 5:18 के घटना से मेल खाता है। और बताता है की गुलामो पर ईटों की आपुर्ती करने का कितना दबाव हुआ करता था
18 वी शताब्दी की राजघराणे के एक मखबरे में जो ‘इंतेफ’ (Intef) का है, वर्णन है की ‘ अपिरु दाख को वाईन बनाने के लिये दबा रहे है।‘
निचे दिया गया और एक भित्तचित्र (चित्र 5) 19 शताब्दि का है जो थेबेस में नख्ति के मखबरे से लिया हुआ है जिसमेन हम तीन गुलामो को दाख की बारी में काम करता और दाखमधु बनाता हुआ पाते है।

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