बाइबल के समय के लोगो की भोजन व्यवस्था: ’रोटी’

बाइबल के समय के लोगो की भोजन व्यवस्था: ’रोटी’

उनका भोजन क्या था?
पवित्र शास्त्र के समय के यहुदी लोगों का सामान्य भोजन रोटी, ओलिव्ह, तेल, पनीर या चिज था; बाग बगिचो से वे फल और सब्जिया पाते थे; और खास मौको पे मांसाहार किया जाता था।
बारली (जौ) और गेहूं
इस्राएल का मुख्य अनाज बारली (जौ) और गेहु था। अनाज को कच्चे खाने की पध्दती भी प्रचलित थी। वे खेती में धान्य के कणिकाओ को तोड्कर हाथ पर मसल कर खाते. (लेव्य 24:14; 2 राजा 4:42) नये नियम में भी शिष्य को हम ऐसा करते हुए पाते है। लुका 6:1: मत्ती 12:1, मरकुस 2:23) साथ ही वे अनाज को भुन कर खाते या पिसकर आटे से बनाये हुए रोटीया खाते। (1 शमु 17:17, 25:18 2 शमु 17:28) कहीबार अन्य प्रकार के अनाज के बीज जैसे सेम, बाजरा, और कठिया गेहूँ आदी का भोजन में इस्तेमाल किया जाता (यहेज्केल 4:9)
रोटीया
सामान्यता गेहु या बारली की रोटी खाई जाती थी। तीन चतुर्थांश लोग अपने भोजन के लिये इन रोटीयों पर ही निर्भर थे। यह इस्राएलीयों का प्रमुख अन्न था।
’रोटी तोड़ना’ या ’रोटी खाना’ यह वाक्यांश सामान्यता ’पूर्ण भोजन’ करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। (उत्प 43:31,32)
दो प्रकार की रोटियां खाई जाती थी, एक गेहूं के आटे से बनी और दूसरी बारली (जौ) से बनी रोटियां (हिंदी बाइबल में कहीबार दोनो प्रकार के रोटियां को केवल ’रोटी’ अनुवाद किया गया है।) आज भी पलिस्तीन लोग भोजन में इन रोटियों का उपयोग करते है।
पुराने और नए नियम के समय पर ज्यादातर गरीब तबके के लोग बारली से बनी हुई रोटियां खाते थे। (पढ़े न्यायियो 7:13) जिन पांच रोटियों को बहुगुणित करके प्रभु यीशु ने 5000 लोगो को खिलाया वे बारली की ही थी। (युहन्ना 6:5-14)
पकाने की पध्दती:
सामान्यता रोटियां खमीर डाल के पकाई जाती। कुछ मौकों पर बेखमिरी रोटियां पकाई जाती थी।
रोटियों को पत्थर से बने तवे पे सेका जाता (1राजा 19.6) या भट्टी में सेका जाता। (लैव्य 2.4) ये भट्टिया जमीन में 4 से 5 फिट गहरा और 3 फिट व्यास का गड्ढा खोदकर बनाई जाती। साथ ही पत्थर के बने बडे घडे का इस्तेमाल रोटीया सेकने के लिये किया जाता।
कहीबार कुछ भट्टीया सामूहिक होती। एक गांव में ऐसी अनेक भट्टीया होती थी। स्त्रियां बारी बारी अपनी अपनी रोटियां सेक घर ले जाती थी। यह भट्टिया जमिन में लम्बी 3 से पाच फुट सुरंग के समान बनाई जाती। कही बार लोग पैसे देकर भट्टियो पे से अपनी रोटियां भून के ले आते थे। (मलाकि 4:1) कुछ भट्टीया तंदुर के समान होती। जिसका वर्णन होशे 7:4 में है।
बड़े मटके या जार को अंदर गर्मी उत्पन्न कर उसपे भी रोटियां सेकी जाती थी। आम घरों में इस प्रकार से रोटियां सेकी जाती थी।
पुराने और नये नियम के समय रोटी बेचने वालो की दुकाने भी हुआ करती थी। (यिर्म 37:21, युहन्ना 5:5-7)
रोटी का आकार
इसमे तीन प्रकार थे, प्रथम इस्राएल में हल्की छोटे आकार के खमीरी रोटी, माना जाता है की इस प्रकार की रोटी ही प्रभु यीशु के हाथो में दी गई थी। दुसरा यीशै ने दाऊद के हाथ जो रोटीया भेजी थी (1 शमु 17:17) इन रोटीयो का आकार गोल की बजाय आयाताकृत होता था। यह आकार में भी बडी होती थी। तिसरा रुमाली रोटी के समान, यह चपाती के समान द्र्वरुप सालन में डुबो कर खाई जाती थी।
रोटी का महत्त्व और आध्यात्मिक संबंध
इसराइली लोग भोजन को खासा महत्त्व देते थे। यदि भोजन करते समय मेहमान आ जाता है तो उसके स्वागत के लिए बीच भोजन से उठा नहीं जाता था। जब तक यजमान भोजन समाप्त ना करले तब तक मेहमान को रुकना अनिवार्य था (द सीरियन क्राइस्ट - अब्राहम रिहबानी)
रोटी और धार्मिकता के विषय कहा जाए तो इसराइली लोग बीज बोने से लेकर रोटियां बनाने तक सभी काम परमेश्वर के नाम से ही करते। रोटी परमेश्वर को धन्यवाद देकर की खाई जाती। मत्ति 26.26 प्रेरित 20.7
प्रभु येशु ने चेलों को जब प्रार्थना सिखाई उसमें ’हमारी रोज की रोटी आज हमे दे’ यह वाक्य ( मत्ती 6.11) हमें अपने रोज भोजन के लिए परमेश्वर पर निर्भरता को सिखाता है। लोगो के रोटी को लेकर अहमियत को देखकर यीशु ने सच्ची रोटी कौन सी यह भी सिखाया। यीशु ने कहा, "जीवन की रोटी मैं हू’ (युह. 6.35)| मती 6:24-33 में प्रभु यीशू ‘क्या खाए’ इसकी चिंता के बजाए परमेश्वर के राज्य की खोज करने कहता है।



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