पवित्रता आंदोलन (Holiness Movement) क्या है?

पवित्रता आंदोलन

पवित्रता आंदोलन

पवित्रता आंदोलन (Holiness Movement) ईसाई विश्वास में एक प्रभावशाली प्रवाह है, जो यह सिखाता है कि मनुष्य पृथ्वी पर संपूर्ण पवित्रता, अर्थात् पापरहित परिपूर्णता (sinless perfection) प्राप्त कर सकता है। यह सिद्धांत "संपूर्ण पवित्रीकरण" (entire sanctification) की शिक्षा देता है, जो आमतौर पर एक आध्यात्मिक अनुभव के माध्यम से प्राप्त होता है। पवित्रता आंदोलन के अनुयायी इस अनुभव को "अनुग्रह का दूसरा कार्य" (second work of grace) या "दूसरा आशीर्वाद" (second blessing) कहते हैं। हालांकि, सुधारित (Reformed) ईसाई इस विचार का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि चाहे कोई कितना भी विश्वासयोग्य क्यों न हो, उसमें मूल पाप (original sin) बना रहता है।

इतिहास

पवित्रता आंदोलन की शुरुआत 1840 में हुई, जब एक मेथोडिस्ट नेत्री, फीबी पामर (Phoebe Palmer) ने पुनरुद्धार सभाएँ (revivals) आयोजित करके पवित्रता की आवश्यकता और इसे प्राप्त करने के तरीकों पर शिक्षा देना शुरू किया। वेस्लेयन, मेथोडिस्ट, नज़रीन (Nazarene) और साल्वेशन आर्मी (Salvation Army) जैसे संप्रदाय ऐतिहासिक रूप से इस आंदोलन से जुड़े रहे हैं। हालांकि, प्रत्येक मंडली की शिक्षाओं में कुछ भिन्नताएँ होती हैं। फिर भी, पवित्रता आंदोलन ने ईसाई इतिहास, विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका में तीसरे महान पुनरुद्धार (Third Great Awakening) के दौरान, पर गहरा प्रभाव डाला। पवित्रता आंदोलन के अनुयायी मुख्य रूप से परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने पर जोर देते हैं और अपनी आज्ञापालन को परमेश्वर के समीप जाने और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग मानते हैं।

बाइबल के अनुसार पवित्रता

पवित्रता बाइबल में दी गई एक आज्ञा है, और प्रत्येक विश्वासयोग्य को इसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए (इब्रानियों 12:14)। हालांकि, पवित्रता आंदोलन के अनुयायी एक महत्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ कर देते हैं—पूर्ण पवित्रता प्राप्त करना मनुष्य के लिए असंभव है। परिपूर्णता, पापरहितता और पवित्र जीवन केवल मनुष्य के अपने प्रयासों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। बाइबल इसे कई स्थानों पर स्पष्ट करती है, विशेष रूप से रोमियों की पुस्तक में। प्रेरित पौलुस ने रोमियों की पुस्तक के प्रारंभिक भाग में समझाया है कि मनुष्य पतित है और अपने बल पर परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकता। इसके अलावा, पूरे इस्राएल का इतिहास दर्शाता है कि मनुष्य केवल नियमों का पालन करके पवित्र नहीं बन सकता।

पवित्रता आंदोलन की त्रुटि

पवित्रता आंदोलन का संबंध पेंटेकोस्टल मंडली (Pentecostalism) से भी है, क्योंकि यह सिखाता है कि परमेश्वर विश्वासियों को "दूसरा आशीर्वाद" (second blessing) प्रदान करता है, जिससे वे पापरहित अवस्था में पहुँच जाते हैं। लेकिन "पापरहित अवस्था" न तो बाइबल में सिखाई गई है और न ही यह मनुष्य के अनुभव से सिद्ध होती है। एक भावनात्मक अनुभव के कारण ऐसा महसूस हो सकता है कि पवित्रता प्राप्त करना संभव है और हम फिर कभी पाप नहीं करेंगे, लेकिन वास्तव में, हम अभी भी शरीर में रहते हैं, और शरीर दुर्बलताओं से ग्रस्त है (रोमियों 7:14–19)। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस भी पूर्ण रूप से पापरहित नहीं हो सका। उसने स्वयं स्वीकार किया कि पुराने पाप का प्रभाव उसके शरीर में अब भी कार्य कर रहा है, यद्यपि वह मन और आत्मा से परमेश्वर की सेवा करता था (रोमियों 7:21–23)।

इसके अलावा, पौलुस ने अपने शरीर में एक "काँटे" (thorn) का उल्लेख किया है, जिसने उसे अपनी निर्बलता के बजाय परमेश्वर की शक्ति पर निर्भर रहना सिखाया (2 कुरिन्थियों 12:7)। अपने जीवन के अंतिम दिनों में, जब उसे सबसे अधिक पवित्र होना चाहिए था, तब उसने स्वयं को "पापियों में सबसे बड़ा" कहा (1 तीमुथियुस 1:15)। यदि "दूसरा आशीर्वाद" मिलने से पापरहित अवस्था प्राप्त होती, तो पौलुस को वह क्यों नहीं मिला? वास्तव में, किसी भी प्रेरित ने यह संकेत नहीं दिया कि "संपूर्ण पवित्रीकरण" (entire sanctification) संभव है, और बाइबल में "दूसरे आशीर्वाद" (second blessing) का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

निष्कर्ष

ईसाई लोग पाप करते हैं (1 यूहन्ना 1:5–10), लेकिन जैसे-जैसे वे मसीह में परिपक्व होते हैं, वे पाप से धीरे-धीरे मुक्त होते जाते हैं (फिलिप्पियों 3:12)। पवित्रता आंदोलन इस गलत धारणा पर आधारित है कि कोई भी विश्वासयोग्य पृथ्वी पर नियमों का पालन करके संपूर्ण पापरहित परिपूर्णता प्राप्त कर सकता है।

Credit: Got Questions

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