जॉन वेस्ली (1703–1791) एक अंग्रेज़ प्रचारक, धर्मशास्त्री और मेथोडिस्ट आंदोलन के संस्थापक थे। वह 18वीं सदी के इंग्लैंड में हुई सुसमाचार पुनरुत्थान की प्रमुख हस्ती थे, और उनके कार्यों ने दुनियाभर में लाखों मसीही विश्वासियों को प्रेरित किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जॉन वेस्ली का जन्म 17 जून 1703 को इंग्लैंड के लिंकिनशायर प्रांत के एपवर्थ में हुआ था। वह सैमुअल वेस्ली के पंद्रहवें पुत्र थे, जो इंग्लैंड के चर्च के याजक थे। उनकी माता, सुज़ाना वेस्ली, एक धर्मपरायण महिला थीं, जिन्होंने जॉन के जीवन पर गहरा आध्यात्मिक प्रभाव डाला। सुज़ाना ने अपने सभी बच्चों को परमेश्वर और बाइबल के सिद्धांतों में सिखाने के लिए बहुत मेहनत की।
11 वर्ष की उम्र में, जॉन को लंदन के चार्टरहाउस स्कूल में पढ़ने भेजा गया, जहाँ उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और 1724 में अपनी डिग्री पूरी की। ऑक्सफोर्ड में रहते हुए, जॉन को इंग्लैंड के चर्च में उपयाजक (डिकन) के रूप में अभिषिक्त किया गया, और उन्होंने अपने विश्वास को गंभीरता से अपनाना शुरू किया।
होली क्लब और प्रारंभिक सेवकाई
ऑक्सफोर्ड में अध्ययन के दौरान, जॉन और उनके भाई चार्ल्स वेस्ली ने "होली क्लब" नामक एक समूह बनाया। इस छोटे समूह ने प्रार्थना, बाइबल अध्ययन, उपवास और गरीबों की सहायता के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। उनके अनुशासित और व्यवस्थित जीवनशैली के कारण उन्हें "मेथोडिस्ट" उपनाम दिया गया।
1735 में, जॉन वेस्ली अमेरिका के जॉर्जिया प्रांत में मिशनरी के रूप में गए। हालांकि, वहाँ उन्हें व्यक्तिगत संघर्ष और सीमित सफलता का सामना करना पड़ा। 1738 में, वह इंग्लैंड लौट आए, आत्मिक रूप से असंतुष्ट और अपने विश्वास पर प्रश्न उठाते हुए।
एक परिवर्तनकारी अनुभव
24 मई 1738 को, वेस्ली ने लंदन के आल्डर्सगेट स्ट्रीट पर एक सभा में भाग लिया, जहाँ किसी ने रोमियों के पत्र पर मार्टिन लूथर की टिप्पणी पढ़ी। उस सभा के दौरान, वेस्ली को एक गहरा आत्मिक अनुभव हुआ। उन्होंने बाद में लिखा, "मुझे लगा कि मेरा हृदय अजीब तरीके से गर्म हो गया है। मुझे विश्वास हुआ कि मैंने केवल मसीह पर ही भरोसा किया है।" यह क्षण उनके जीवन और सेवकाई का सबसे बड़ा मोड़ था।
मेथोडिस्ट संजीवन
आल्डर्सगेट अनुभव के बाद, वेस्ली ने नए उत्साह के साथ प्रचार करना शुरू किया। उन्होंने जॉर्ज व्हाइटफील्ड और अपने भाई चार्ल्स के साथ हजारों लोगों को खुले मैदानों, कब्रिस्तानों और सड़कों पर प्रचार किया। वेस्ली का संदेश व्यक्तिगत विश्वास, पश्चाताप, और पवित्रता के महत्व पर केंद्रित था।
वेस्ली का मानना था कि सुसमाचार को सभी तक पहुँचना चाहिए, विशेष रूप से गरीबों, अशिक्षितों और हाशिए पर रहने वालों तक। उन्होंने अपने जीवनकाल में घोड़े पर 2,50,000 मील से अधिक की यात्रा की और 40,000 से अधिक उपदेश दिए।
मेथोडिज़्म का विकास
जैसे-जैसे उनका आंदोलन बढ़ा, वेस्ली ने शिष्यों, उत्तरदायित्व, और आपसी सहायता के लिए छोटे समूह बनाए। ये "समाज" मेथोडिज़्म की नींव बन गए। वेस्ली ने अनुशासन, आत्मिक विकास, और सेवा के कार्यों को मसीही जीवन के मुख्य पहलुओं के रूप में सिखाया।
हालाँकि वेस्ली इंग्लैंड के चर्च के याजक बने रहे, लेकिन उनके अनुयायियों ने बाद में एक स्वतंत्र संप्रदाय, जिसे मेथोडिस्ट चर्च कहा गया, का गठन किया।
उत्तराधिकार और मृत्यु
जॉन वेस्ली का निधन 2 मार्च 1791 को 87 वर्ष की आयु में हुआ। उनके अंतिम शब्द थे, "सबसे बड़ी बात यह है कि परमेश्वर हमारे साथ है।" उनके निधन तक, मेथोडिज़्म इंग्लैंड, अमेरिका और अन्य देशों में फैल चुका था।
वेस्ली की शिक्षाएँ, उपदेश और उनके भाई चार्ल्स द्वारा रचे गए भजन आज भी लाखों मसीही विश्वासियों को प्रेरित करते हैं। उनका जीवन अनुग्रह, सामाजिक न्याय, और सुसमाचार प्रचार के प्रति समर्पण का एक अद्भुत उदाहरण है।
जॉन वेस्ली का जीवन परमेश्वर के प्रति समर्पण, दूसरों के प्रति प्रेम, और सुसमाचार को फैलाने के लिए अथक प्रयास का प्रतीक है।
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