मसीही इतिहास
आरंभिक
मसीही अगुवे
संत इग्नेशियस
संत इग्नेशियस
का संक्षिप्त
विवरण:
संत इग्नेशियस
की मौत ईस्वी
सन 110 -117 के दौरान
हुई थी। वे
अंताकिया के
तीसरे बिशप
रहे थे। यह
रोम प्रांत का
एक बड़ा शहर
था और सीरिया
प्रांत की
राजधानी थी। वे
प्रेरित
युहन्ना के
शिष्य थे। यह भी
कहा जाता है
की प्रेरित
पतरस ने
उन्हें अंताकिया
का बिशप होने
के लिए अभिषेक
किया था। जहां
पर उन्होंने 40
वर्ष तक सेवा
की। उनके माता
पिता
गैर-यहूदी थे।
यह भी कहा
जाता है की इग्नेशियस
वही बालक था
जिसे प्रभू यीशू
ने आशीष देने
के लिये उठाया
था। (मत्ती 18:2)
उसके
जीवन के बारे
में इन बातों
के अलावा और कोई
जानकारी
उपलब्ध नहीं
है।
संत इग्नेशियस
की गिरफ्तारी और
यात्रा के दौरान
लिखी हुई
पत्रियां:
हम
प्रेरितों के
काम में पाते
है की प्रभू
यीशु के चेले
सर्वप्रथम
अंताकिया में
ही मसीही
कहलाये थे।
गैर-मसीहीयों
द्वारा उन्हें
दिया हुआ यह
नाम अब पूरे
रोम
साम्राज्य
में उनकी
पहचान बन गया
था। लॅटिन
भाषा के ‘ख्रिस्टियानोई’
शब्द से आया
यह शब्द चेलों
की मसीह के
प्रति समर्पण
और अधीनता को
दिखाता है। इग्नेशियस
के लेखों में
भी चेलों के
लिये इस शब्द
का उपयोग हम पाते
है।
रोम
सम्राट नीरो
के काल से ही
मसीहीयों का
सताव आरंभ हुआ
था। मसीहीयों
को मरने या तो
मसीहत छोड ने इन दोनों
में एक चूनने
का उपाय दिया जाता
था। असंख्य
मसीहीयों ने
यीशू के लिये
मरना चुना। यह
वह समय था जब जिस
मसीह यीशू ने
हमारे लिये दुख
उठाया, उसके
लिये दुख सहना
और रक्त साक्षी
होना धन्य
माना जाता था।
मसीह बडे आनंद
के साथ मृत्यू
को गले लगाते
थे। बडे सताव
और शहादत के
बाद भी
सुसमाचार का
असर कम नहीं
हुआ। जितना
ज्यादा सताव
उतनी ज्यादा
मसीहत फैलती
गई। लोगों ने
प्रभू यीशू को
अपने जीवन में
लिया। वे
मृत्यू या
सत्ता किसी से
नहीं डरे।
सम्राट
नीरो के बाद
उसके स्थान पर
सम्राट डॉमिशियन
रोम पर राज्य
करने लगा
(ईस्वी 81-96)। जो
सम्राट नीरो
से भी अधिक
कृर था। उसने
मांग की थी की ‘प्रभु
और ईश्वर’ के
रुप में केवल
उसकी ही
उपासना की
जाये। इस सम्राट
के कार्यकाल
में मसीहीयों का
सताव बढ़ी
मात्रा में
हुआ।
सम्राट
डॉमिशियन के
बाद मसीहीयों
को कुछ दो
वर्षों की
राहत जरूर
मिली लेकिन सम्राट
ट्रेजन (ईस्वी
सन 98-117) के समय पर
फिर से मसीहत
को सताव का
सामना करना
पडा। उसके
कार्यकाल में
मसीहीयों से
तीन बार एक ही
प्रश्न पुछा
जाता, "क्या वे
मसीही है?" यदि
वे हाँ कहते
तो उन्हे
तुरन्त मौत की
सजा के लिये
ले जाया जाता
था। जो इनकार
करते वे
स्वतंत्र किए
जाते थे।
सम्राट
ट्रेजन के समय
पर ही इग्नेशियस
को अंताकिया
से गिरफ्तार
किया गया। और
उसके निवेदन
पर उसे सम्राट
के सामने पेश
करने के लिये
ले जाया गया।
अदालती
कार्यवाही
में उसने राजा
के सामने अपने
विश्वास अंगीकार
किया। दण्ड
स्वरुप उसे
रोम में मौत
की सजा देने
के लिये रवाना
किया गया। दस सैनिकों
के साथ सडक के मार्ग
से त्रोआस से होते
हुए उन्हे रोम
ले जाया गया
और इसी मार्ग
दौरान वे स्मुरना
में वहाँ के
बिशप
पॉलिकॉर्प से
मिले। इस
यात्रा के समय
पर उन्होंने
सात पत्र भी
लिखे जो 'आरंभिक
कलिसिया के
अगुवे
(फादर्स) के
लेख' में
महत्त्वपूर्ण
है।
उनके द्वारा लिखित
पत्रों में हम
पुराने नियम
और सुसमाचार
के कही उद्धरण
(संदर्भ) को
पाते है।
विशेषता इन
पत्रियों में
पौलुस की
पत्रियों का
प्रभाव भी
अधिक दिखाई
देता है। उसके
पत्रियों में
तीन मुख्य विषय
दिखाई देते
है।
1. रक्त
साक्षी होना
और सताव सहना: मसीह के
लिये दुख
भोगना सच्चे
चेले होने के
प्रमाण है, मसीह
के दुख भोग का
अनुकरण करना, उसके
द्वारा
रोमियों को
लिखे पत्र में
हम विशेषता इस
विषय को पाते
है।
2. कलिसिया
की एकता: कलिसिया के
अधिकार और
बिशप के प्रति
योग्य
व्यवहार पर हम
जोर दिया हुआ
पाते है। उसने
सिखाया की
बिशप
परमेश्वर का
प्रतिनिधित्व
करता है।
3. झूठे
शिक्षाओं का
खंडन करना: संत इग्नेशियस
ने यहूदी मत
को मसीहत पर
थौपने का खंडन
किया। इसके
अलावा उस समय
मसीहत में
नवोदित 'आभासवादी' (Docetic) और
ग्नॉस्टिक
मतवादीयों का
खंडन किया।
उसके पत्रों
में हम मसीह
यीशु के ‘मानवता
और ईश्वरत्व’ दोनों
पर जोर दिया
हुआ हम पाते
है।
शहादत (मृत्यु):
हमें उसकी
शहादत या रक्त
साक्षी होने
की निश्चित तिथि
का पता नहीं
है परन्तु
ईस्वी सन 110 से 117
के दौरान उसे
मृत्यू दण्ड
दिया गया है। उन्हे
त्रोआस से
फिलीप्पी से
होते हुए उसे
रोम ले जाया
गया।
त्रिस्तरिय
फ्लेवियन रंगभूमि
अर्थात आज
जिसे हम 'कोलोस्सियम' कहते
है जिसे ईस्वी
सन 80 के
दरम्यान
बनाया गया था, इसमें
50,000 लोगों की
बैठने की
क्षमता थी तथा
रोमी लोगों के
लिये मनोरंजन
का स्थान था, उमसे
सजा दी गई।
सर्वप्रथम
उसे कोड़े मारे
गये, शस्त्रों
से उसके शरीर
को फाडा गया, अत्यंत
कृर तरीके से
सताने के बाद
उसे भूखे
शेरों के
सामने डाल
दिया गया। कुछ
ही समय वहाँ
पर उसका केवल
कंकाल बचा हुआ
था। मसीहीयों
उसके बचे हुए
कंकाल को
एकत्रित कर
उसे अंताकिया
में दफनाया।
लेख संपादन:
पास्टर संदिप कांबळे
(ठाणे)
संदर्भ:
<![if !supportLists]>1. <![endif]>A Selection from Writings of Early Church Fathers- Lennart Parsson
<![if !supportLists]>2. <![endif]>The Fathers Know Best – Jimmy Akin
<![if !supportLists]>3. <![endif]>70 Great Christians
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