मसीही
इतिहास की समय
रेखा
(संक्षिप्त
विवरण)
ईस्वी सन 1
ईस्वी सन 4 पूर्व यहुदीया के बेतलेहेम में प्रभु यीशु का जन्म
ईस्वी सन 29 यीशु ने अपने 30 वे आयु में सेवकाई का आरंभ किया।
ईस्वी सन 33 यीशू मसीह को कृस पर चढाया गया, उसका का पुनरुत्थान और 500 से अधिक लोगों पर प्रकट होना और स्वर्गरोहन (1 कुरिं 15:6) प्रभु यीशु ने अपने चेलों को महान आज्ञा दी (मत्ती 28:19)
33 पिन्तेकुस्त: पवित्र आत्मा यरूशलेम में चेलों पर उतरता है। करीब 3,000 लोग मसीही बनते हैं। उन्होंने पूरे रोमन साम्राज्य में सुसमाचार फैलाया (प्रेरितों के काम 2:8)।
35 पहले मसीही रक्तसाक्षी स्तिफनुस की यरूशलेम में पत्थर मारकर हत्या कर दी गई। विश्वासी यहूदिया, सामरिया में तितर-बितर हो जाते हैं।
35 पौल का परिवर्तन, वह यहूदियों और अन्यजातियों को सुसमाचार प्रचार के लिये ईस्वी सन 48 से लगातार तीन मिशनरी यात्रा पर जाता है, उसी दौरान वह नई कलीसियाओं को 13 पत्र (पत्रिकाएँ) लिखता है।
41 रोमन सूबेदार, कुरनेलियुस का धर्म परिवर्तन। पतरस और अन्य ईसाई अन्यजातियों को सुसमाचार प्रचार करते हैं। मसीह के अनुयायियों को सबसे पहले अन्ताकिया में ‘मसीही’ नाम से बुलाया जाता है।
44 ईसाइयों को राजा हेरोदेस अग्रिप्पा के द्वारा सताया जाता है। याकुब को मार डाला जाता है, पतरस को कैद कर लिया जाता है। यहूदिया में अकाल; अन्ताकिया से ईसाई राहत भेजते हैं।
45-100 सुसमाचार की चार किताबे (मत्ती, मरकुस, लुका और यूहन्ना) और नए नियम की अन्य किताबें लिखी गई हैं।
49-50 यरूशलेम की धर्म परिषद पौल से सहमत होती है कि यहूदी कानून का पालन करने की गैर-यहूदी लोगों को आवश्यकता नहीं है। अन्यजातियों के मध्य पौलुस के कार्य को मान्यता मिली।
53 यहूदियों को रोम से निकाला गया। यहूदी विश्वासी प्रिसिला और अक्विला भाग गए।
64 रोम में भीषण आग का दोष ईसाइयों पर लगाया गया। सम्राट नीरो हजारों ईसाइयों को यातना देता है और मारता है।
67-68? पतरस और पौलुस रोम ले जाया गया। पौलुस घर में नजरबंद रहते हुए प्रचार करता है। दोनों को नीरो राजा के द्वारा मार डाल दिया गया।
66-70 रोमियों के खिलाफ यहूदी विद्रोह। सम्राट टाइटस ने यरूशलेम में मंदिर को नष्ट कर दिया। अलेक्जेंड्रिया, कार्थेज और रोम सहित साम्राज्य के सभी हिस्सों में यहूदी और ईसाई भाग गए। अन्ताकिया ईसाई धर्म का केंद्र बन गया।
71-81 रोम में कालीज़ीयम का निर्माण। ईसाइयों को जानवरों के हवाले कर यातना दे देकर मार डाला गया।
81 डोमिनिटियन के अधीन ईसाइयों का रोम में उत्पीड़न। यहूदियों ने आराधनालयों से यीशु के अनुयायियों को निकाल दिया।
85-150 प्रेरितिक पिताओं के लेखन (प्रारंभिक चर्च के नेता) बरनबास, रोम के क्लेमेंट, इग्नाटियस, पॉलीकार्प।
90 चर्च के भीतर नोस्टिक विधर्मियों (झुठी शिक्षाओं ) का उदय। कुछ ज्ञानशास्त्रियों ने यीशु की मानवता (डोकेटिज्म) को नकारते हुए कहा कि वह केवल एक शरीर के रूप में आभासी रुप से प्रकट हुआ था। गूढ़ज्ञानवादी दावा करते हैं कि उनके पास दिव्य रहस्योद्घाटन और विश्वास से परे गुप्त ज्ञान है।
मसीहत का फैलाव मिस्र (मार्क), सूडान (इथियोपियाई नपुंसक), आर्मेनिया (थैडियस, बार्थोलोम्यू), फ्रांस, इटली, जर्मनी, ब्रिटेन, इराक, ईरान, भारत (थॉमस), ग्रीस, यूगोस्लाविया, बोस्निया, क्रोएशिया (टाइटस), एशिया , माइनर (आज तुर्की), अल्बानिया, अल्जीरिया, लीबिया और ट्यूनीशिया।
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