सर विलियम रामसे - एक संशयवादी पुरातत्वशास्त्री की जीवन यात्रा
सर विलियम रामसे आज तक के महानत्तम पुरातत्वविदों में से एक हैं। वे 19वीं शताब्दीकी जर्मन ऐतिहासिक विचारधारा केअनुसरणकर्ता थे। परिणामतः उनका विश्वास था कि प्रेरितों के काम को द्वितीय शताब्दी के मध्य में लिखा गया है। वे इस विचार पर अटल विश्वास स्थूलाकृति रखते थे।
एशिया माइनर के अध्ययन हेतु शोध के दौरान वे लूका की रचनाओं को पढ़ने हेतु विवश हुए। परिणामस्वरूप उनके शोध में अनावृत हुए प्रचुर प्रमाणों के कारण उन्हें अपनी मान्यताओं में पूर्ण परिवर्तन हेतु बाध्य होना पड़ा।
इस विषय में उन्होंने कहाः “मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि जो निष्कर्ष अब मैं पाठकों के समक्ष सही ठहराना चाहता हूँ, उसके प्रति किसी पूर्वाग्रह के बिना मैंने जाँच पड़ताल आरंभ की थी। उसके विपरीत, मैंने इसे प्रतिकूल मन के साथ आरम्भ किया था, क्योंकि एक समय में टयूबिनन सिद्धांतों की चतुरता तथा उत्तमता पर दृढ़ विश्वास रखता था। विषय का सूक्ष्म अध्ययन मेरे विषय से तब बाहर था, परंतु हाल ही में मैंने प्रेरितों के काम को एशिया माइनर की स्थूलाकृति निर्धारण, इतिहास तथा समाज की जानकारी देने वाले महत्वपूर्ण स्त्रोत के रूप में पहचाना। धीरे धीरे मुझ पर यह स्पष्ट हुआ, कि इसमें वर्णित वृत्तांतों के विविध विवरणों में अद्भुत सत्य थे। वास्तव में आरंभ से यह दृढ़ विचार रखते हुए कि प्रेरितों के काम अनिवार्यतः एक द्वितीय शताब्दी की रचना है, और प्रथम शताब्दी की स्थितियों के लिए विश्वसनीय प्रमाण के रूप में इस पर कभी भरोसा नहीं करते हुए, मैंने धीरे धीरे इसे अस्पष्ट और जटिल अध्ययनों में एक उपयोगी सहायक के रूप में पहचाना है।"
(Blacklock, LAENT, 36 में रामसे की पुस्तक सेंट पॉल द ट्रेवेलर एण्ड द रोमन सीटीजन से उद्धृत)
CREDIT- THE NEW EVIDENCE THAT DEMANDS A VERDICT - JOSH MCDOWELL
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